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धनतेरस क्यों और कैसे मनाये ?

मित्रों अगर बात धनतेरस कि करे तो दीपावली की शुरु आत धनतेरस से ही आरंभ हो जाती है।                          

Actually,

धनतेरस, नरक चतुर्दशी ( रूप चतुर्दशी ) और महालक्ष्मी की

 पूजा - ये तीनों पर्वों का मिश्रण है दीपावली। दीपावली की

  शुरुआत धनतेरस के अगले दिन नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली होती है। लोग धनतेरस से ही अपने घरों  के द्वारों पर दीप जलाना शुरू कर देते हैं और इसे देवप्रबोधिनी एकादशी तक जलाते हैं। पुराने कथनों के अनुसार धनतेरस के दिन बरतनों को या किसी भी धातु को खरीदना शुभ माना जाता है और यही सब से बड़ा कारण है कि धनतेरस के दिन बरतनों की दुकानों में बहुत भीड़ रहती है। बरतन खरीद कर लोग उसकी पूजा करते हैं और धनतेरस का पर्व मनाते हैं।कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन ही धन्वंतरि भगवान का जन्म हुआ था, इसलिए इस दिन को 'धनतेरस' के नाम से जाना जाता है। धन्वंतरि भगवान को आयुर्वेद का संपूर्ण ज्ञान था।और ये सभी औषधियों के ज्ञाता हैं। अतः इन से स्वास्थ्य लाभ के लिए प्रार्थना की जाती है।

धनतेरस के अगले दिन (नरक चतुर्दशी ) होती है।इस दिन सूर्योदय के पूर्व स्नान करना बहुत शुभ माना जाता है और रात में यम पूजा के साथ दीपक जलाए जाते हैं । इस संबंध में पौराणिक कथा प्रचलित है कि भगवान कृष्ण ने एक दैत्य नरकासुर का संहार किया था और सोलह हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के चंगुल से मुक्त करवा दिया था।

अतः नरकासुर के आतंक से मुक्ति की खुशी में भी यह पर्व  धूम धाम से मनाते हैं।

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